नए ज़माने में रह रही हमारी संतान को उसी नई जीवन-शैली के अनुरूप आचरण करना
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नए ज़माने में रह रही हमारी संतान को उसी नई जीवन-शैली के अनुरूप आचरण करना होता है.
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कहने की आवश्यकता नहीं कि महात्मा गांधी को श्रद्धासुमन अर्पित करना जितना आसान है, उनकी शिक्षाओं के अनुरूप आचरण करना उतना ही कठिन है।
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यदि सोमनाथ चटर्जी अपने प्रति दिखाई गई सर्वदलीय आस्था के अनुरूप आचरण करना चाहते हैं तो कोई भी उन्हें ऐसा करने से कैसे रोक सकता है?
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इस तरह उनका मंतव्य स्पष्ट था कि शिक्षित होने के क्रम में अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि हमें अपने परिवेश के अनुरूप आचरण करना चाहिए और फिजूलखर्ची और आडंबर के प्रदर्शन से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हम अपनी अर्थ-व्यवस्था के दायरे में रहेंगे और दिखावा न करके हम प्रकारांतर से उन लोगों के अपमान करने के पाप से भी बच जाएंगे जो अर्थाभाव में दो जून की रोटी भी नहीं खा पा रहे हैं।
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इस तरह उनका मंतव्य स्पष्ट था कि शिक्षित होने के क्रम में अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि हमें अपने परिवेश के अनुरूप आचरण करना चाहिए और फिजूलखर्ची और आडंबर के प्रदर्शन से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हम अपनी अर्थ-व्यवस्था के दायरे में रहेंगे और दिखावा न करके हम प्रकारांतर से उन लोगों के अपमान करने के पाप से भी बच जाएंगे जो अर्थाभाव में दो जून की रोटी भी नहीं खा पा रहे हैं।